
नवरात्रि का पर्व हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा को सृष्टि की रचना करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और केवल अंधकार ही था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें ‘कुष्मांडा’ कहा गया, जिसका अर्थ है ‘कुम्हड़ा’ (एक प्रकार का फल) से उत्पन्न अंडा, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है।
मां कुष्मांडा के इस दिव्य रूप की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन विशेष रूप से की जाती है। यहाँ हम मां कुष्मांडा की कथा, उनके स्वरूप, पूजा कि विधि और उनके आशीर्वाद से मिलने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मां कुष्मांडा की कथा
मां कुष्मांडा की कथा बहुत प्राचीन और पौराणिक है। जब ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर केवल अंधकार था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। उनकी मुस्कान से सृष्टि का जन्म हुआ, और तभी से वे सृष्टि की आदि शक्ति मानी जाने लगीं। उन्होंने ब्रह्मांड की रचना के लिए सूरज को उसकी जगह पर स्थापित किया और पूरे संसार को जीवन प्रदान किया।
मां कुष्मांडा का यह रूप बहुत ही ऊर्जा और प्रकाश से भरपूर है। ऐसा माना जाता है कि वे सूरज के केंद्र में निवास करती हैं और अपनी दिव्य शक्ति से पूरे ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करती हैं। उनकी इस दिव्यता से चारों ओर प्रकाश फैलता है और जीवन का संचार होता है।
मां कुष्मांडा के इस रूप से जुड़े अनेक पौराणिक संदर्भ मिलते हैं, जिनमें उन्हें संपूर्ण सृष्टि की आदिशक्ति और जीवनदाता के रूप में वर्णित किया गया है। उनके भक्त उन्हें आराधना कर जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति करते हैं।
मां कुष्मांडा का स्वरूप
मां कुष्मांडा का स्वरूप अत्यंत अद्भुत और प्रभावशाली है। वे अष्टभुजा धारी देवी हैं, जिनके आठ हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और अमृत कलश सुशोभित होते हैं। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, चक्र, गदा और जप माला होती है। वे अपने एक हाथ में अमृत कलश धारण करती हैं, जो अमरत्व का प्रतीक है। मां का यह स्वरूप न केवल शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है, बल्कि जीवनदायिनी और कल्याणकारी भी है।
मां कुष्मांडा सिंह पर सवार रहती हैं, जो उनके साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनके तेजस्वी और चमकदार रूप से संसार में जीवन और प्रकाश का संचार होता है। उनकी पूजा करने से साधक को बल, ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा विशेष रूप से की जाती है। उनकी पूजा से न केवल शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त होता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। मां कुष्मांडा की पूजा विधि इस प्रकार है:
कलश स्थापना और दीप प्रज्वलन: पूजा की शुरुआत कलश स्थापना और दीपक जलाकर करें। यह शुभ संकेत होता है और मां को आह्वान करने का तरीका है।
स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करें: पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और शुद्ध जल छिड़कें।
मां कुष्मांडा का ध्यान और मंत्र
मां कुष्मांडा का ध्यान करें और निम्न मंत्र का जाप करें:
“ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः”
“वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥”
“सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते॥”
इनमे से किसी भी एक मंत्र का 108 बार जाप करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
फूल और भोग अर्पण: मां कुष्मांडा को विशेष रूप से कुम्हड़ा (कद्दू) का भोग अर्पित किया जाता है। उन्हें कुम्हड़ा अत्यंत प्रिय है और इसे अर्पित करने से साधक को मां की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही सफेद और लाल फूल, धूप, दीप आदि का अर्पण करें।
ध्यान और साधना: पूजा के बाद मां कुष्मांडा का ध्यान करें। ध्यान करने से साधक को मानसिक शांति, स्थिरता और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह साधना मन की शांति और आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

मां कुष्मांडा की पूजा से मिलने वाले लाभ
मां कुष्मांडा की पूजा से साधक को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। नवरात्रि के चौथे दिन उनकी पूजा विशेष रूप से इन लाभों के लिए की जाती है:
ऊर्जा और जीवन शक्ति: मां कुष्मांडा की पूजा से साधक को ऊर्जा, स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होती है। उनकी कृपा से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है और शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
समृद्धि और सुख: मां की पूजा करने से भक्तों को आर्थिक समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है। मां कुष्मांडा की कृपा से साधक के जीवन में धन, वैभव और खुशहाली का वास होता है।
आध्यात्मिक उन्नति: मां कुष्मांडा की आराधना से साधक को आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्राप्त होती है। उनका आशीर्वाद साधक को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
भय और शत्रुओं से मुक्ति: मां कुष्मांडा की पूजा से भक्तों को भय और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। उनका दिव्य आशीर्वाद साधक को हर प्रकार की नकारात्मकता और बाधाओं से बचाता है।
मानसिक शांति और संतुलन: मां की आराधना से साधक को मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह पूजा मानसिक तनाव और जीवन की उलझनों को समाप्त कर मन को शांति प्रदान करती है।
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मां कुष्मांडा की पूजा से जीवन में सकारात्मकता
मां कुष्मांडा की पूजा और साधना से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। उनकी कृपा से जीवन में हर प्रकार की नकारात्मकता का नाश होता है और साधक को आंतरिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। नवरात्रि के चौथे दिन मां की आराधना से भक्तों को आंतरिक शक्ति, सुख-समृद्धि और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
मां कुष्मांडा की कथा और उनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन को अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है। उनकी आराधना से भक्तों को जीवन में ऊर्जा, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है। मां का यह रूप सृष्टि की रचनाकार और जीवनदाता के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि 2024 में मां कुष्मांडा की पूजा करके अपने जीवन में नई ऊर्जा, सकारात्मकता और शांति का स्वागत करें।