
नवरात्रि का पर्व नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विशेष अवसर होता है। इन नौ दिनों में हर दिन देवी के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विधान होता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है, जो भय, अज्ञानता और संकटों को दूर करने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं। यहाँ हम जानेंगे माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा, उनके स्वरूप का रहस्य और उनकी पूजा विधि।
माँ कालरात्रि का स्वरूप और रहस्य
माँ कालरात्रि देवी दुर्गा का सातवां स्वरूप मानी जाती हैं। उनका नाम ‘कालरात्रि’ दो शब्दों से मिलकर बना है—’काल’ का अर्थ है समय और मृत्यु, और ‘रात्रि’ का अर्थ है अंधकार। माँ कालरात्रि का स्वरूप हमें बताता है कि वे मृत्यु और अंधकार के समय की देवी हैं, जो बुराई, अज्ञानता और भय को नष्ट करती हैं। उन्हें संसार से हर प्रकार के भय और दुष्टता को समाप्त करने वाली शक्ति के रूप में जाना जाता है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक दिखने वाला होता है, लेकिन यह भयानकता केवल उनके दुष्टों का संहार करने वाले रूप की प्रतीक है। उनका वर्ण काला है, जिसके कारण उन्हें ‘कालरात्रि’ कहा जाता है। उनके चार हाथ होते हैं। उनके एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में लौ जलती हुई मशाल होती है। शेष दो हाथ अभय और वर मुद्रा में होते हैं, जिससे भक्तों को निर्भयता और आशीर्वाद का प्रतीक मिलता है। उनका वाहन गधा है, जो शांति और सरलता का प्रतीक है।

माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा
माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा देवी के रूप की अद्भुत शक्ति और उनकी अद्वितीय महिमा को प्रकट करती है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब दानवों और राक्षसों का अत्याचार चरम पर था, तब देवताओं और मनुष्यों ने भगवान शिव और देवी पार्वती से प्रार्थना की। इसी समय, देवी पार्वती ने अपने क्रोधित रूप में माँ कालरात्रि का अवतार लिया।
महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं के साम्राज्य पर कब्जा कर लिया था और स्वर्ग में अपना आतंक फैलाया था। माँ कालरात्रि ने अपने प्रचंड रूप से महिषासुर और अन्य राक्षसों का संहार किया और देवताओं को उनका स्वर्ग पुनः दिलाया। इसी तरह शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे दानवों का भी उन्होंने संहार किया। उनकी इस वीरता और शक्ति के कारण उन्हें महाकाल की देवी कहा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार राक्षस रक्तबीज ने देवताओं पर आक्रमण किया। वह राक्षस इतना शक्तिशाली था कि जब भी उसके रक्त की एक बूंद धरती पर गिरती, उससे एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता। देवी कात्यायनी (माँ दुर्गा का रूप) ने उसे हराने के लिए माँ कालरात्रि को प्रकट किया। माँ कालरात्रि ने रक्तबीज को मारकर उसका रक्त अपने मुख में भर लिया ताकि उसकी रक्त की बूंदें धरती पर न गिरें और उससे नए दानव न जन्में। इस प्रकार, उन्होंने रक्तबीज का अंत किया और देवताओं को भय और संकट से मुक्त किया।
माँ कालरात्रि की महिमा
माँ कालरात्रि की महिमा अपार है। उन्हें संकट मोचन और भय हरने वाली देवी माना जाता है। माँ कालरात्रि की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन के सभी प्रकार के भय, संकट, रोग और अज्ञानता से मुक्ति मिलती है। उनकी पूजा से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और उसे हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
उन्हें संकट मोचन और भय हराने वाली देवी मन जाता है | माँ कालरात्रि कि उपासना करने से स्वक्ति को जीवन के सभी प्रकार के भय और संकट रोह से मुखत
जो भक्त सच्चे मन से माँ कालरात्रि की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन में अद्भुत शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है। माँ कालरात्रि की आराधना से शत्रुओं का नाश होता है और साधक को भय से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, उनकी कृपा से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। उनकी आराधना विशेष रूप से जीवन के संघर्षपूर्ण क्षणों में मार्गदर्शन और संरक्षण प्रदान करती है।

माँ कालरात्रि की पूजा विधि
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा विधि को बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु पूरे दिन उपवास रखकर माँ की पूजा और आराधना करते हैं। आइए जानते हैं माँ कालरात्रि की पूजा विधि:
स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को साफ करें।
मूर्ति या चित्र स्थापना: माँ कालरात्रि का चित्र या मूर्ति पूजा स्थल पर स्थापित करें। उनके समक्ष दीपक जलाएं और सुगंधित धूप अर्पित करें।
पूजा सामग्री: माँ कालरात्रि की पूजा के लिए विशेष सामग्री जैसे लाल पुष्प, चंदन, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र जाप: माँ कालरात्रि के मंत्र का जाप करें। उनका बीज मंत्र है:
“ॐ कालरात्र्यै नमः।”
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:”
“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी”
“जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि”
“जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते”
आरती और प्रार्थना: माँ कालरात्रि की आरती करें और उनसे भय, अज्ञानता और संकट से मुक्ति की प्रार्थना करें।
विशेष भोग: माँ कालरात्रि को गुड़ और मिठाइयों का भोग अर्पित करें, क्योंकि यह उनका प्रिय प्रसाद है।
ध्यान और समर्पण: माँ कालरात्रि का ध्यान करें और पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा करें। उनसे आशीर्वाद की कामना करें और अपनी समस्याओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।
Also Read: – मां ब्रह्मचारिणी की कथा: नवरात्रि के दूसरे दिन की विशेष पूजा और साधना
Also Read: – नवरात्रि 2024: माँ चंद्रघंटा की कथा और उनकी पूजा से मिलने वाले लाभ

निष्कर्ष
माँ कालरात्रि की पूजा और आराधना नवरात्रि के सातवें दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। माँ कालरात्रि केवल भय और अंधकार को नष्ट करने वाली देवी नहीं हैं, बल्कि वे भक्तों को जीवन में साहस, शक्ति और सफलता प्रदान करती हैं। उनकी पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्त को हर प्रकार की नकारात्मकता और कठिनाई से मुक्ति मिलती है। नवरात्रि 2024 में माँ कालरात्रि की पूजा करके उनके आशीर्वाद को प्राप्त करें और जीवन को सफल, सुखमय और संकटमुक्त बनाएं।
जय माँ कालरात्रि!